सांपों ने फिर ज़हर हैं उगले
कहा,"है अमृत, पीना होगा"
विनाश की काली आंधी में
कैसा है यह अमृत महोत्सव!
किसका है यह अमृत महोत्सव!
अंधकार भर करके ब्रुस में
उजाले पर जो पोत रहे हैं
उनका है यह अमृत काल जी!
जिनके दिल हैं मन हैं काले
सूरत गोरी लकदक कपड़े
मुंह से जिनके झूठ और झांसे
बरस रहे बिल्कुल सच जैसे
उनका है यह अमृत महोत्सव!
जिनकी जानमारू नीतियों से
भविष्य सब का भस्म हो रहा
वर्तमान दुखदाई भीषण!
उनका है यह अमृत महोत्सव!
जिनने देश की अर्थव्यवस्था
के ढांचे को ध्वस्त कर दिया
जो अजगरों को पाल रहे हैं
उनके आगे डाल रहे हैं
हमको आपको,भाग न पा हैं
रहे आप हम,खिंचे जा रहे
मंदी के अजगरी पेट में
उन अजगरों का अमृत महोत्सव?
किसका है यह अमृत महोत्सव!
किसका हर साल बजट है बोलें
उसमें कितना छल होता है
जनसाधारण केलिए उसमें
सिर्फ़ बोझ के होता है क्या?
चौड़ी होती गहरी होती
अमीरी ग़रीबी की यह खाई
जिसकी नहीं कोई भरपाई
इस खाई का अमृत महोत्सव!
धर्म को कोई क्या चाटेगा?
पेट भरेगा सबका ईश्वर
या नौकरी देंगी सरकारें ?
चारों तरफ़ बस ढोंग धतूरा
यज्ञ हवन बस हिंदू मुस्लिम
पाखंडी बाबाओं के दल
चमत्कार का भ्रामक दलदल
बोल लंठई बोल घृणा के
बोलते ये सरकारी पालतू
इन धूर्तों के अमृत महोत्सव!
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वासुकि प्रसाद "उन्मत्त"
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