जसवीर सिंह ’ हलधर’
उजालों में अंधेरा अब यहां होने नहीं देंगे।
भले ही जान जाए कौम को रोने नहीं देंगे।
सियाही खून जैसी है कलम तलवार से पैनी,
किसी का ख्वाब दहसत में यहां खोने नहीं देंगे।
यहां सपने पनपते है अनेकों जाति मजहब के,
किसी को बीज वहशत का यहां बोने नहीं देंगे।
मिटा देंगे जला देंगे पड़ौसी के दलालों को,
उन्हें आतंक के औजार अब ढोने नहीं देंगे।
सियासत की जमातों में बढ़ी है भूख सत्ता की,
किसी का काम सच्चा झूठ से धोने नहीं देंगे।
सपोलों पल रहे हैं कुछ हमारी आस्तीनों में,
उन्हें ’हलधर’ कभी भी चैन से सोने नहीं देंगे।
मोबाईल : 9897346173
इस अंक के रचनाकार
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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023
उजाले में अंधेरा ...
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