संजय मृदुल
अब क्या करें?
एक पेड़ के नीचे उसने डेरा डाला। थकान मिटाई, कुछ खाया, पानी पिया फिर उसे थोड़ी मस्ती सूझी।
उसने अपने फटे जूते लिए और पेड़ की एक डाली पर टांग दिए। पेड़ के नीचे एक पत्थर था उसपर उकेर दिया।
"ये चमत्कारी पेड़ है यहां फटे जूते टांगने से हर मन्नत पूरी होती है।"
कुछ देर बाद एक बैलगाड़ी निकली मुसाफिर उसमें बैठ कर आगे निकल गया।
कुछ दिन बाद व्यापारियों का एक काफ़िला वहां से गुजरा। हरियाली देख कर सब वहां सुस्ताने रुके। एक की नजर उस पेड़ पर लटके जूते पर पड़ी।
उत्सुकता
से उसने पास जाकर देखा। पत्थर पर लिखी इबारत पढ़ी। वह व्यापारी बड़ी मात्रा
में माल लेकर निकला था। उसने मन्नत मांगी की इस बार सारा माल बिक जाए, और
अपने जूते उतारकर वहां लटका दिए।
भय
जो होता है वह अंधविश्वास को बढ़ावा देता है। हर व्यापारी अपने अच्छे
व्यापार को लेकर सशंकित होता है। उसकी देखादेखी कई व्यापारियों ने ऐसा
किया। अब पेड़ पर कई जोड़ी जूते चप्पल लटके दिखाई देने लगे।
रोज
उस सड़क पर अनेक लोग निकलते। कुछ तो पेड़ पर लटके हुए जूते चप्पल देख
मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जाते। कुछ उत्सुकतावश रुक कर इबारत पढ़ते और अपने
जूते निकाल वहां बांध देते।
कुछ
समय बाद वही व्यक्ति अपने सफर से वापस लौट रहा था, वापसी में उसने देखा उस
पेड़ पर सैकड़ो जूते लटके हुए हैं। वह खूब जोर से हँसा। उसके साथ चल रहे
लोगों ने हंसने का कारण पूछा तो उसने बताया कि उसने क्या किया था। सभी उस
घटना पर हंसते हुए आगे बढ़ गए।
इस
बात को दशकों बीत गए। वो पेड़ बूढ़ा हो कर सूख गया। अब भी उस पेड़ पर अब
हजारों की संख्या में जूते चप्पल भरे हुए हैं। और उसके बाजू में एक नया पेड़
खड़ा हो गया है जो किसी ने कुछ समय पहले रोप दिया था।
वहां एक बोर्ड लगा हुआ है जिसपर उस बूढ़े पेड़ का महात्म्य लिखा हुआ है।
आज
भी आने जाने वाले वहाँ रुक कर जूते अर्पित करते हैं। वहां अब छोटा सा
बाजार भी लगने लगा है। एक बड़ी जूते की दुकान भी खुल गयी है वहां।
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