डॉ. महेन्द्र शर्मा ’ मधुकर’
अब सितम कुछ और ढाओ,ताकि हो बरकत मुझे
अब तुम्हारे गम से यानि,मिलती है राहत मुझे
ये जुनूने इश्क,ले आया है कैसे मोड़ पर
अब हरिक सूरत में,दिखती है तेरी सूरत मुझे
लग रहा है ये,फकीरों की है सोहबत का असर
अब लुभाती ही नहीं है,दौलतो शौहरत मुझे
फिर से अब निर्माण होना है, बहोत मुश्किल मेरा
बेवफाई ने तेरी,यूं कर दिया गारत मुझे
मेरे अंदर जो हैं शैतां,मैं करूँ उनसे जिहाद
ये खुदा से इल्तजि है,दे जरा हिम्मत मुझे
बेवफाई से तेरी,कोई भी शिकवा न था
सख्त तेरा बोलना,कर गया आहत मुझे
जिदगी तू ऐसा कर,कुछ रोज को छुट्टी पे जा
एक पल की भी नहीं है आज़कल फुर्सत मुझे
इस अंक के रचनाकार
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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023
अब सितम कुछ और ...
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