
- अरुण अर्णव खरे --
बहुत उदास है मंगला |
जीवनरेखा अस्पताल की विजिटर गैलरी में एक बेंच पर सिकुड़ कर बैठी हैं ..
शून्य में ताकती हुई, अपनी नासमझी पर स्वयं को कोसती हुई |
मन
व्यथित है .. पीड़ा का पूरा झरना आँखों से गिर कर गालों पर अपने निशान छोड़
गया है | बार-बार कातर निगाहों से उस कमरे के दरवाजे की ओर देख लेती हैं
जिसके भीतर पाँच साल का उनका पोता विभू अपने जीवन से संघर्ष कर रहा है | छ:
घंटे हो गए हैं मंगला को ऐसे ही बैठे हुए | अपने हर इष्ट को न जाने कितनी
बार स्मरण कर चुकी हैं .. मन में सैकड़ों संकल्प ले लिए हैं .. प्रभु, विभू
को ठीक कर दो, सत्यनारायण की कथा कराऊँगी .. खेड़ापति हनुमान मंदिर में चोला
चढ़ाऊँगी .. गाँव की देवी के मंदिर में हवन कराऊँगी .. शिरडी वाले बाबा के
मंदिर में माथा टेकने जाऊँगी .. पीली-कोठी वाले बाबा की मजार पर चादर
चढ़ाऊँगी .. भोले बाबा के मंदिर में भंडारा कराऊँगी .. बस विभू अच्छा हो जाए
|
विभू में ही तो मंगला की जान बसती है .. उसके आने के बाद से ही तो मंगला ने फिर से जीना शुरु किया है |
विनय
थोड़ी-थोड़ी देर में नर्सिंग-स्टाफ की सेंट्रली लोकेटेड डेस्क तक जाकर वापस
आकर बैठ जाता है | बोलता कुछ नहीं है .. उसके कदमों की लड़खड़ाहट उसके अंदर
के भय को बयाँ कर देती है | मंगला बेटे की यह हालत देखती है तो काँप उठती
है | एक जोर की हूँक उनके हृदय में उठती है और वहीं फँस कर रह जाती है |
अर्चना अंदर ही है विभू के पास | एक सिस्टर भी वहाँ है, लगातार मॉनिटर कर
रही है | डॉक्टर देवकांत थोड़ी देर पहले ही चौथी बार विभू को देखकर गए हैं |
विनय पूछना चाहकर भी कुछ पूछ नहीं पाता है उनसे | शब्द गले में ही रुँध कर
रह जाते हैं | कुछ देर पहले ही डॉक्टर ने उसके कंधों पर हाथ रखकर दिलासा
दी थी और सीनियर नर्स को कुछ इंस्ट्रक्शन देते हुए दूसरे कमरे में चले गए
थे |
पाँच
साल पहले का वह दिन याद हो आया है मंगला को | शाम को हलकी बारिश हुई थी |
दिन की सारी तपिश घुल गई थी और मौसम सुहाना हो गया था | रात के आठ बजे
होंगे कि अर्चना को दर्द होने लगा | अर्चना ने नवजात शिशु के कपड़े और कुछ
जरूरी सामान पहले ही बैग में रख कर उनको सौंप दिया था | विनय ने डॉक्टर
शुभांगी को फोन कर दिया था | अर्चना के अस्पताल पहुँचते ही डॉक्टर ने पूरी
तैयारी कर ली थी और सीधे उसे लेबर रूम में ले गए थे | तीन घंटे के कष्ट भरे
इंतजार के बाद विभू के होने की सूचना मिली थी | पहली बार विभू को गोद में
लेकर कितना भावविभोर हो गईं थी मंगला .. आत्मा को कितनी तृप्ति मिली थी ..
छब्बीस साल पहले पति को खोने के बाद पहली बार जिंदगी के संगीत को महसूस
किया था | दादी-दादी कहता हुआ विभू जब उसकी गोदी में छुप जाता या कंधों पर
चढ़ जाता तो तिरपन की उम्र में सत्तर की लगने वाली मंगला को अपना बचपन लौटता
प्रतीत होता | विभू उसे दौड़ाता, छकाता और वह अपने कमर पर हाथ रखकर उसके
साथ खेलती, मस्ती करती .. विभू की हँसी में, जिंदगी के दिए सारे दुख, सारे
जख्म, सारी तकलीफें भूल गई थी वह |
विनय
सात साल का था जब स्कूल के हेडमास्टर शिवसहाय द्विवेदी ने वह अशुभ समाचार
दिया था | कक्षा लेने के दौरान ही दयाशंकर मिश्रा को दिल का दौरा पड़ा था और
मंगला इतने बड़े संसार में अकेली रह गई थी | जिंदगी की समस्त राहें स्याह
नजर आने लगी थीं | पहाड़ सी जिंदगी के सामने परेशानियों के सचमुच के पहाड़
खड़े हो गए थे | कोई अपना था नहीं .. ऐसे में रिश्ते के फुफेरे देवर की
हमदर्दी सुकून लेकर आई थी | उसने ही नर्मदा में पति दयाशंकर के अस्थि
विसर्जन से लेकर शेष सभी कर्मकांड पूरे किए थे | पर बहुत शैतान निकला वह ..
उस दिन को याद कर आज भी मंगला गुस्से से थरथराने लग जाती है | कई रातें
सूनी छत को निहारते गुजरी थीं | बड़े दिनों के बाद आँख लगी थी कि अचीन्हे
स्पर्श ने जगा दिया था | मंगला चौंक कर उठ बैठी | बगल में वही देवर लेटा
हुआ उनके पेट को सहला रहा था | उसने जोर से उस राक्षस का हाथ झटक दिया और
तुरंत वहाँ से निकल जाने को कहा | बदहवास सी वह विनय को सीने से लगाकर बहुत
देर तक सुबकती रही थी | जिंदगी की इस भयावहता ने मंगला को अंदर तक डरा
दिया था | उसे समझ में आ गया था .. किसी पर विश्वास करना कितना कठिन है ..
उसे अकेले ही सारी चुनौतियों से पार पाना होगा | विनय उस समय दूसरी कक्षा
में पढ़ता था .. अब विनय ही उसके लिए जीवन का मकसद था .. उसी के लिए जीवित
रहना था उन्हें |
पति
की इच्छानुसार विनय को इंजीनियर बनाना था .. द्विवेदी मास्साब की कोशिश से
विनय की स्कूल फीस माफ हो गई थी लेकिन फैमिली पेंशन की राशि से पति के
सपने को पूरा कर पाना संभव नहीं था | ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी सो अनुकंपा
नियुक्ति नहीं मिल सकी | जिला शिक्षाधिकारी ने चपरासी के पद पर अनुकंपा
नियुक्ति दिलाने की बात कही थी और मंगला को
रविवार को दोपहर में अकेले बंगले पर आने के लिए कहा था | वह कम पढ़ी-लिखी
जरूर थी पर इतनी नासमझ नहीं थी कि जिला शिक्षाधिकारी के शैतानी मंसूबों को न
समझ पाती | उसने नौकरी करने की इच्छा ही त्याग दी |
बचपन
में सिलाई सीखी थी .. वह आस-पास के बच्चों और महिलाओं के कपड़े सिलने लगी |
समय बचता तो आचार डालती और बड़ी-पापड़ बनाती | द्विवेदी मास्साब का बड़ा
सहारा था | उनके प्रयास से कस्बे के कुछ सेल्फ हेल्प ग्रुप उसका सामान खरीद
लेते और मेलों-प्रदर्शनियों में बेंच देते |
विनय
पढ़ने में अच्छा था, हमेशा क्लास में प्रथम आता | वह समझदार भी बहुत था,
कभी माँ को परेशान नहीं करता और न ही कोई ऐसी माँग करता जिससे मंगला के
सामने दुविधा की स्थिति बनती | 12वीं में उसे अट्ठासी परसेंट नम्बर मिले और
पीईटी में अच्छी रैंकिंग | उसका एडमीशन इंदौर के इंजीनियरिंग कॉलेज में हो
गया | द्विवेदी मास्साब उसका एडमीशन कराने साथ में गए थे |
द्विवेदी
मास्साब के मंगला पर बहुत उपकार रहे हैं | उनको याद कर सिर श्रद्धा से
झुक जाता है | जब विनय ने अर्चना के साथ शादी करने की इच्छा जाहिर की थी तो
द्विवेदी मास्साब ने ही उसे जात-पात के दकियानूसी भ्रमजाल से बाहर निकाला
था और विनय की शादी हिंदु तथा सिंधी रीति-रिवाजों से करने के लिए राजी किया
था | जब गुगलानी-परिवार रोका करने आया था तो उनने ही अभिभावक की भूमिका
निभाई थी | विभू जब पहली बार अपने गाँव आया था तो उन्होंने बड़ी देविन के
मंदिर में पूजा और भंडारे का आयोजन किया था | विनय भी उनका बहुत सम्मान
करता था | पिछले साल जब वह नहीं रहे थे तो विनय ने ही पुणे से आकर उनका
अंतिम संस्कार किया था | द्विवेदी मास्साब नि:संतान थे लेकिन गाँव की ही एक
अनाथ बेटी को उन्होंने गोद लेकर पाला-पोसा था और उसकी शादी की थी |
विभू
दो साल का था कि विनय ने उसे मोना मांटेसरी प्ले स्कूल में एडमीशन दिला
दिया | मंगला ने इतनी कम उम्र में विभू को स्कूल न भेजने का अनुरोध किया था
तो विनय ने उसे यह कर चुप करा दिया था - "माँ, आज कड़ी स्पर्द्धा का समय
है, यदि विभू को अभी स्कूल नहीं भेजेंगे तो बाद में उसे अच्छे स्कूल में
एडमीशन नहीं मिल पाएगा .. इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की अंग्रेजी बहुत
अच्छी हो जाती है | यहाँ से निकले बच्चों का एडमीशन डीन और विबग्योर जैसे
प्रतिष्ठित स्कूलों में आसानी से हो जाता है | माँ आप तो जानती हैं न ..
सामने वाली भावना भाभी की बेटी अभी केजी टू में है और कितने फर्राटे से
अंग्रेजी बोलती है |
क्या बोलती मंगला
... आज की जरूरतें कहाँ समझती है वह .. बेटे-बहू ने विभू के बारे में अच्छा
ही सोचा होगा, यह सोच कर चुप रही | शुरु-शुरु में विभू स्कूल जाने में
बहुत नखरे करता था .. कई बार तो रोते हुए जाता | बारह बजे जब लौटता तो बहुत
उदास दिखता | मंगला उसे बहू के लौटने तक कलेजे से लगा कर रखती | धीरे-धीरे
विभू स्कूल में रम गया और केजी वन में आते-आते अच्छी अंग्रेजी बोलने लगा |
एक दिन स्कूल से लौटकर विभू मंगला से
बोला - "दादी, टीचर टोल्ड अस टू स्पीक इंगलिश इन होम .. बट हाऊ केन आई
स्पीक .. यू डोंट नो इंग्लिश" .. मंगला बहुत देर तक विभू का मुँह ताकती
रही | उसे उत्तर देते न देख विभू ने कहा - "आई विल टीच यू दादी .. डोंट
वरी"
उस दिन के बाद से विभू स्कूल से आने
के बाद मंगला को इंग्लिश सिखाने की कोशिश करने लगा .. "हाऊ आर यू दादी"
मंगला जवाब नहीं देती तो समझाता .. "उत्तर में बोलिए - आई एम फाइन" .. पर
मंगला तो उसके हावभाव देखकर मुग्ध हो जाती और पढ़ाई धरी रह जाती |
विनय
विभू को अंग्रेजी में बात करते देख कर आनन्दित महसूस करता | पर मंगला,
उन्हें तो कुछ समझ ही नहीं आता | उन्हें लगने लगा था कि अंग्रेजी न जानने
के कारण विभू उनसे दूर जा रहा है | वह स्कूल से आकर मंगला के साथ कम ही
खेलता और अपने कमरे में जाकर खिलौनों के साथ ज्यादा समय बिताता | अब टीवी
पर भी मोटू-पतलू के स्थान पर डिस्कवरी किड्स या डिज्नी जूनियर चैनल्स पर
इंग्लिश कार्टून्स देखने में उसका अधिक मन लगता | एक बार मंगला ने विनय से
कहा भी था कि वह विभू से अंग्रेजी में बात नहीं कर पाती तो विभू भी उससे कम
ही बोलता है | विभू असहज महसूस करता है |
"ऐसा कुछ नहीं है माँ .. कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा" - विनय ने कहते हुए उनकी बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था |
दो
दिन बाद विभू का पाँचवाँ जन्मदिन था | शाम को वह बिग बाजार से विनय और
अर्चना के साथ डेकोरेशन किट, प्रिंटेड इमोजी बलून्स, थीम कैप्स, पैपर
मास्क्स, चॉकलेट्स और गिफ्ट आयटम्स लेके आया था | मंगला के बुलाने पर उसने
सारा सामान उन्हें दिखाया था और फिर हाथ में पकड़ी एक छोटी सी
प्लास्टिक-वायल दिखाते हुए कहा था - "दादी सी इट, आई हेव बॉट इट फॉर मी ..
इट्स वेरी टेस्टी"
"क्या है इसमें .. देखूँ तो जरा" - मंगला ने कहा |
"नो दादी" - विभू इतराते हुए बोला - "आई विल गिव यू सम ग्रेनुल्स ओनली टू टेस्ट .. ओपन योर हैंड"
मंगला ने हथेली फैला दी | विभू ने वायल से कुछ दाने निकाल कर मंगला की हथेली पर रख दिए - "अरे ये तो मीठी इलायची है"
"मीठी इलाची नहीं .. से स्वीट कार्डामम दादी" - विभू ने कहा |
"ठीक है .. ठीक है .. ला कुछ दाने और दे मुझे"
"आई
कांट गिव यू मोर दादी .. इट विल गेट फिनिश्ड" कहते हुए विभू उस वायल को
छुपा कर रखने चला गया | विनय और अर्चना, विभू और मंगला के बीच का वार्तालाप
बड़ी तन्मयता से सुन रहे थे और खुश हो रहे थे |
विभू
के जन्मदिन के आठ दिन बाद ही वह मनहूस घटना घट गई | विभू स्कूल से आया था
और खाना खाकर फुरसत हुआ ही था कि सामने रहने वाली भावना परांजपे अपनी बेटी
को लेकर आ गई, बोली - "आंटी मैं अपनी एक सहेली को देखने हॉस्पिटल जा रही
हूँ .. दो घंटे में वापस आ जाऊँगी .. रिनी को छोड़े जा रही हूँ .. विभू के
साथ खेलती रहेगी |"
विभू और रिनी अंदर
कमरे में खेलने में व्यस्त हो गए | थोड़ी देर बाद विभू आया और बोला - "दादी
वी आर प्लेइंग डॉक्टर-पैशेंट गेम .. प्लीज लाई फ्लैट .. आई विल चेक यू"
मंगला
विभू का आशय ठीक से समझ नहीं सकी तो विभू ने ही उसको पकड़ कर सीधा लिटा
दिया और स्टेथेस्कोप लगाकर चेक करने लगा | रिनी ने थर्मामीटर लगाकर उनका
बुखार नापने का उपक्रम किया |
दोनों बच्चे वापस अपने कमरे में चले गए | मंगला लेटी रही | भावना दो घंटे के भीतर ही आ गई और रिनी को ले गई |
रिनी
से खेल-खेल में थर्मामीटर टूट गया था लेकिन उसने किसी को बताया नहीं |
विभू ने भी ध्यान नहीं दिया था | रिनी के जाने के बाद जब वह कमरे में वापस
आया तो उसने पलंग के पास टूटा हुआ थर्मामीटर और इलायची सरीखे चमकीले दाने
बिखरे देखे | उन्हें देखते ही उसके मुँह से निकला - "वॉव, थर्मामीटर हेज सो
ब्यूटीफुल कार्डामम ग्रेनुल्स"
विभू
कुछ देर तक फर्श पर बिखरे दानों को देखता रहा | माँ की कही बात उसे याद हो
आई कि जमीन पर गिरी हुई चीजें उठाकर नहीं खाते | वह मन मार कर रह गया | तभी
उसकी नजर टूटे हुए थर्मामीटर पर पड़ी | वह उसे उठाकर देख ही रहा था कि
उसमें से दो दाने निकल कर हथेली से चिपक गए | इस बार वह उन्हें खाने का लोभ
संवरण नहीं कर सका | उसने उन दोनों दानों को कुछ देर तक निहारा और फिर
मुँह में डाल लिए | कुछ देर में ही उसे उल्टियाँ होने लगीं |
"तुमने कुछ खाया क्या" - मंगला ने विभू की पीठ सहलाते हुए पूछा |
"नथिंग दादी .. ओनली फ्यू कार्डामम ग्रेनुल्स ऑफ थर्मामीटर" - विभू बड़ी मुश्किल से बोल पाया |
आधे
घंटे में ही विभू को चार-पाँच उल्टियाँ हो गई थीं | घबराहट में मंगला को
कुछ समझ में नहीं आ रहा था, बदहवास सी वह विभू को गोदी में लिए भावना को
बुलाने दौड़ी | भावना ने जल्दी-जल्दी अदरक और शहद मिलाकर विभू को पिलाई |
किस्मत अच्छी थी कि तभी विनय आ गया और विभू की हालत देखकर तुरंत उसे
जीवनरेखा अस्पताल ले आया | अर्चना को भी फोन कर वहीं बुला लिया |
डॉक्टर ने विभू को चेक करने के बाद मंगला से पूछा था - "क्या खाया है विभू ने, सीवियर इंफेक्शन हुआ है उसे"
"रोज की तरह दाल-चावल ही खाए थे उसने" - मंगला ने कहा |
"और कुछ भी खाया था .. सोच कर बताइए"
"और
तो कुछ नहीं खाया .. हाँ रोज की तरह मीठी इलायची के दाने खाए थे उसने ..
मेरे पूछने पर विभू ने यही बताया था ... थर्मामीटर इलाची गरेनुल जैसा कुछ
बोला था उसने"
सुनकर डॉक्टर के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं | बोले - "सिस्टर, इट्स इमरजेंसी .. बच्चे ने मरकरी खा लिया है"
मंगला
का गला सूखने लगा था | सामने टंगी घड़ी रात के चार बजा रही थी | सात घंटे
से ऊपर हो गए थे उसे विचार-श्रृंखला में खोए हुए | वह पानी पीने के लिए उठी
ही थी कि देखा विनय विभू के कमरे से निकल कर बाहर आ रहा है | वह कुछ
पूछती, इससे पहले विनय ही बोल पड़ा - "अब विभू ठीक है माँ .. आप देख सकती
हैं उसे"
मंगला गहरी सांस लेती हुई पुन:
बैठ गई | उसकी आँखों से आँसुओं का सोता फूट पड़ा | विनय वहीं उसके पास बैठ
गया और मंगला की गोदी में सिर रखकर खुद भी बहुत देर तक सुबकता रहा |
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-- अरुण अर्णव खरे
डी-1/35 दानिश नगर
होशंगाबाद रोड, भोपाल (म०प्र०),
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मोबा०: 9893007744 ई मेल: arunarnaw@gmail.com
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