" हैलो..,हैलो..पमा!"
"हाॅं। हैलो..बोल बालू।"-"मैं गाॅंव में आया हूॅं। तू कहाॅं है?"
-"मैं काम पर हूं । रात को जल्द घर आया तो मिलता हूं; नहीं तो कल मिलेंगे।
-"ठीक है।रखता हूं। बाय।"
दूसरे दिन दोपहर के समय रास्ते से जोर से आवाज आया," बालू है घर पर।"
माॅं ने घर का गेट खोला, तो रास्ते पर पमा दिखाई दिया । मैंने कहा,"पमा, थोड़ी देर के लिए आ।चाय पीते है।"
"अभी नहीं । अगली बार। बालू तू ही बाहर आ। हम बाहर घूमकर आते हैं। बहुत दिन हुए खुलकर बातें नहीं हुई।"
-"दोन मिनट ठैर, मैं अभी आया।"
हम दोन्हों बातें करते- करते गाॅंव से बहुत दूर आए। मैंने दुःख भरे स्वर में कहा, "पमा, तुम्हारे पिता भीमराव की मृत्यु वार्ता सुनी, बहुत दुःख हुआ। क्या वे बीमार थे?"
"बीमार नहीं थे। किंतु उन्हें कुछ दिन पहले पैरालिसिस का अटैक आया था। वे एक जगह बैठे रहते थे। खाना हर दिन खाते थे।" पमा ने कहा।
"फिर, अचानक यह कैसे हुआ?" बालू ने पूछा।
मुझे भी समझ नहीं आया। उन्होंने रात में खाना भी खाया था । किंतु अचानक सुबह..." पमा रोते हुए कहने लगा।
"दुःखी मत हो पमा। तू उन्हें समय पर अस्पताल लेकर जाता था । उनकी निरंतर सेवा की। जो हाथ में था, सब किया।" बालू ने धीर देते हुए कहा।
"भले ही वे एक जगह पर थे। कुछ बोलते नहीं थे। हमें पहचान नहीं पाते थे। इतना सब होने के बावजूद भी वे मेरे आधार स्तंभ थे।" पमा ने खुद को संभालते हुए कहा।
"हाॅं। वह तो सच है।" बालू ने कहा।
" पिताजी जाने का दुःख तो था ही। साथ ही गाॅंव के कुछ सवर्ण लोगों ने जाति के नाम..." इतना कहकर पमा शांत बैठा।
"मतलब, मैं नहीं समझा।" सोच में पड़कर बालू ने पूछा।
"पिताजी के अंत्यसंस्कार को लेकर प्रश्न खड़ा किया। पिताजी का मृत्यु राजनीतिक मुद्दा बनाया। " उदास भाव से पमा ने कहा।
"गाॅंव में दो श्मशान भूमि हैं।" बालू ने कहा।
तुझे मालूम है बालू दलित समाज की श्मशान भूमि। वह सिर्फ नाम के लिए है। वहा जाने- आने के लिए रास्ता तक नहीं । वहा सभी ओर कीचड़ है। मनुष्य,जानवर की विष्ठा भी ! सुविधा कुछ भी नहीं। बारिश के दिनों में क्या हालत होती है? यह पूछो मत। तू ही बता वहां कैसे खड़े रहें?
"दलित समाज के श्मशान भूमि को सरकार की ओर से बहुत फंड आता है।"बालू ने कहा।
"आता है, किंतु कोई कुछ नहीं करता।" गुस्से में पमा ने कहा।
" दलित समाज के नेता भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ आवाज नहीं उठाते।"बालू ने पूछा।
"दलित बस्ती में कई जगह पर नालियां भी नहीं है। इस वजह से रोगराई बढ़ती है। इन पर कोई ध्यान नहीं देता। शिक्षित युवा आवाज उठाता है, पर उनकी कोई नहीं सुनता। बस्स मिलीभगत है सब की ।" पमा ने गंभीर स्वर में कहा।
जाने दो पमा। बदलाव एक दिन जरूर होगा। पिताजी के शव को गाॅंव के श्मशान भूमि में लेकर जाना चाहिए था।
"बालू,पिताजी का अंत्यसंस्कार गाॅंव के श्मशान भूमि में करने से पिताजी के आत्मा को शांति या मुक्ति नहीं मिलने वाली। पर मेरे सामने कोई पर्याय नहीं है,इसलिए मैं वहां अंत्यसंस्कार कर रहा हूं। मैंने पहले भी सरपंच को दलित समाज की श्मशान भूमि की परिस्थिति को लेकर चर्चा की थी। किंतु उन्होंने कोई भी कार्य नहीं किया। अब जो भी परिस्थिति निर्माण होगी उसे जिम्मेदार वही होंगे।"
"पमा,कैसी परिस्थिति? कुछ नहीं होगा। समय बदल गया है । सभी मनुष्य तो है। सभी को समान अधिकार हैं।"
" बालू,समय बदला है, किंतु जातिभेद, अस्पृश्यता का स्वरूप वहीं है। यह वर्तमान का वास्तव चित्र हैं । संविधान में जातिभेद, अस्पृश्यता के संदर्भ में अनेक प्रावधान है, लेकिन उसका अमल नहीं होता। कहने के लिए वर्तमान में लोकतंत्र है,अस्तित्व में तो तानाशाही है।"
"पमा,युवा पीढ़ी परिवर्तन करेंगी।"
मुझे नहीं लगता जल्द परिवर्तन होगा, हम निरंतर प्रयास करते रहेंगे।बालू,जब मैंने मेरे पिताजी के अंत्यसंस्कार को लेकर सरपंच से चर्चा फोन की, तो उन्होंने खुद का स्वार्थ देखा।
"कैसा स्वार्थ? पमा।"
मैंने सरपंच से फोन पर कहा कि मैं मेरे पिताजी का शव गाॅंव के श्मशान भूमि में लेकर जा रहा हूं। तो उन्होंने कहा कि अभी चुनाव का समय है।इस घटना का परिणाम मुझ पर होगा। यह स्वार्थ ही हुआ ना।
"पमा,चुनाव पर परिणाम कैसे?"
सरपंच का कहना था कि इस बार सरपंच पद का जनता से चयन होने वाला है। दोनों पार्टी ने दलित समाज के कुछ स्री, पुरूष को सदस्य के रूप में तिकट दिया हैं। मैंने हिंदू धर्म के श्मशान भूमि में अंत्यसंस्कार करने अनुमति दिई, तो मेरी हार निश्चित है। गाॅंव के कई लोग मुझ पर दबाव डाल रहे हैं।
"फिर,पमा तुने क्या निर्णय लिया?"
बालू, गाॅंव के पढ़े-लिखे कई लोग कह रहे है कि मैं गाॅंव के संस्कार,रीती,रिवाज मोड़ रहा हूं।यानी उन्हें हमारे जाति से आज भी परिशानी हैं। हमें जीवन भर निम्न समझा। मेरे पिताजी के शव को मैं अग्निदाह भी सुकून से नहीं दे पा रहा हूं। जीवन भर भी और मरने के पश्चात भी धार्मिक परंपरा से संघर्ष करना पड़ रहा है। तब भी वे मुझे दोषी ठहरा रहे हैं। उन्हें जो कहना है कहने दो। मुझे मालूम है, मैं कोई गलत कार्य नहीं कर रहा ।मैं पिताजी का शव गाॅंव के श्मशान भूमि में लेकर गया।
"पमा,गाॅंव का वातावरण दूषित हुआ।"
बालू,कुछ नहीं हुआ।चुनाव पर भी कोई परिणाम नहीं हुआ। वे अच्छे ओट से चुनकर आए। किंतु कुछ लोगों के नीच विचार समझ आए । इतना ही नहीं तो मुझे ग्रामपंचायत कार्यालय के कामकाज से निकाल दिया। क्यों निकाला? यह कारण अभी तक नहीं बताया।
पमा, परंपरा के विरोध में जाने से सजा तो मिलेगी। डरना नहीं है,आगे बढ़ना है। यह क्रांति की शुरुआत है। ऐसे ही बदलाव वर्तमान की मांग है। यह कार्य युवा पीढ़ी ही कर सकती हैं।तभी सही में समाज में समानता स्थापित होगी। महापुरुष के सपनों का समाज निर्माण होगा।
संक्षिप्त परिचय
नाम:- रामेश्वर महादेव वाढेकर
जन्म:- 20 मई,1991
जन्मस्थान:-ग्राम-सादोळा,तहसील-
शिक्षा:-एम.ए.,(हिंदी)एम.फिल्.,
लेखन:- चरित्रहीन,दलाल,सी.एच.बी.इंटरव्
लड़का ही क्यों?, अकेलापन, षड़यंत्र, शहीद आदि कहानियाॅं विभिन्न पत्रिका में प्रकाशित।भाषा, विवरण, शोध दिशा, अक्षरवार्ता, गगनांचल,युवा हिन्दुस्तानी ज़बान, साहित्य यात्रा, विचार वीथी, डिप्रेस्ड एक्सप्रेस आदि पत्रिकाओं में लेख तथा संगोष्ठियों में प्रपत्र प्रस्तुति।
संप्रति:- शोध कार्य में अध्ययनरत।
चलभाष् :-9022561824
ईमेल:-rvadhekar@gmail.com
पत्राचार पता:-हिंदी विभाग,डाॅ.बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय,औरंगाबाद - महाराष्ट्र, पिन -431004
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